
जब इस्लाम ही नहीं था ? तुम अल्लाह
के बन्दों का कॉमन सेंस की चटनी बनी हुयी
है ? तू हज़ार बार नहीं लाखों बार भी
मस्जिद में माथा पटकेगा तो भी इस्लाम १४००
साल के पहले नहीं जा पायेगा......!
मुहम्मद का बाप क्या मुस्लमान था ? कैसे
था अगर इस्लाम ही नहीं था तब ?
अरब देश का नाम था और्व....... “हिस्ट्री ऑफ
पर्शिया” के लेखक साइक्स ने ये
लिखा है... १४०० साल पहले जन्मे हो और अब
ये साबित करते हो कि धरती सूरज चाँद
सब
तुमने ही बना दिया... अरे सारे शर्म
लिहाज ख़त्म कर चुके हो क्या ?
मोहम्मद पैदा हुआ तो वैदिक संस्कृति था
वहाँ.. हिन्दू था वो... उसके चाचा
उमर-बिन-ए-हश्शाम प्रसिद्द सनातनी विद्वान्
था... जिसने मुहम्मद के इस तरह से
वैदिक धर्म के विरोध को गलत ठहराया तो
मुहम्मद ने अपने चाचा का ही क़त्ल कर
दिया....... इसके चाचा का इतना सम्मान होता
था अरब में कि अरबी समाज, जो कि
भगवान शिव के भक्त थे उन्हें अबुल हाकम
अर्थात ‘ज्ञान का पिता’ कहते थे। और जब
इस्लाम बना दिया एक डाकुओं की किताब के
जरिये तो उस किताब को मानने वाले
डाकुओं ने उसके चाचा को ‘अज्ञान का
पिता’ कह कर अपमानित करने लगे जैसे कि आज
मुस्लिम हिन्दुओं को करते हैं या समझते
हैं....
जब मोहम्मद ने मक्का पर आक्रमण किया, उस
समय वहाँ बृहस्पति, मंगल, अश्विनी
कुमार, गरूड़, नृसिंह की मूर्तियाँ
प्रतिष्ठित थी। साथ ही एक मूर्ति वहाँ
विश्व विजेता महाराजा बलि की भी थी......
मोहम्मद ने उन सब मूर्त्तियों को
तोड़कर वहाँ बने कुएँ में फेंक दिया, किन्तु
तोड़े गये शिवलिंग का एक टुकडा आज
भी काबा में सम्मानपूर्वक प्रतिष्ठित है,
बल्कि हिन्दू देख ना लें कि काबा में
शिवलिंग का टुकड़ा है... इसलिए चादर से ढँक
कर छुपा कर रखते हैं और जो भी काबा
के लिए जाते हैं वो लौट कर शर्म से ये बात
बताते ही नहीं...... किस मुंह से
बताएँगे कि जिंदगी भर काफिरों से नफरत
करने वाला काफिरों के भगवन के आगे झुक
कर आया है ..
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