अक्सर हमारे समाज में मुस्लिम लड़कों द्वारा हिन्दू लड़कियों से पहले दोस्ती की जाती है फिर, धीरे-धीरे इस्लाम के बारे में मनघडंत कहानियां बनाकर उस हिन्दू लड़की का ब्रेन वाश कर उसे इस्लाम कबूल करवा दिया जाता है!
आज मुस्लिमों द्वारा चलाये जा रहे ""लव जिहाद"" का यही असली स्वरुप है!
लेकिन मुस्लिम आज हिंदुस्तान में लव जिहाद करने में इसीलिए सफल जाते हैं क्योंकि, भोली-भाली हिन्दू लड़कियों को इतिहास की ठीक से जानकारी नहीं होती है और उन्हें लगता है कि इस्लाम में भी उन्हें उसी प्रकार की इज्जत और मान-सम्मान प्राप्त होगा जैसा कि उन्हें अपने हिन्दू सनातन धर्म में हो रहा है!
लेकिन हिन्दू लड़कियों से अनुरोध है कि कृपया
किसी मुस्लिम से दोस्ती गांठने या प्यार की पींगे बढ़ने से पहले वे रजिया सुल्तान का हश्र जरुर जान लें !
दरअसल हत्या, लूट, बलात्कार और विश्वासघात ही इस्लाम का आधार स्तम्भ है और, इसमें हजारों सालों में भी कोई परिवर्तन नहीं आया है!
रजिया सुल्तान गुलामों के भी गुलाम अल्तमश की एक अनाथ पुत्री थी और, एक मुस्लिम होने के बावजूद भी मुस्लिम भेड़ियों से भरी मुस्लिम दरबार में उसकी जवानी सबको सहज प्राप्य थी!
अतः बहुत ही कम दिनों के अन्दर ही उसका नारी शील चूर -चूर हो गया तथा, वो दिल्ली की गद्दी से किसी गेंद की भांति उछाल दी गयी औरदिल्ली की गलियों में उसे घसीट कर मार डाला गया!
पुरानी दिल्ली के तुर्कमान गेट से एक फलांग दूर एक कब्रीला ढेर के नीचे रजिया आज भी दफ़न है!
खैर
सन 1236 में अल्तमश की मृत्यु के बाद इस्लामी संस्कारों के अनुसार राजगद्दी के लिए छीना-झपटी होने लगी क्योंकि, मुस्लिमों शासकों के समय में "बेटा शब्द" बहुत ही भ्रामक था !
कारण कि मुस्लिम शासकों के समय उनके हरम किसी मुर्गी के दबड़े से भी ज्यादा उपजाऊ हुआ करता था क्योंकि उसमे मुख्य दरवाजे से सुल्तान का प्रवेश होता था और, चोर दरवाजे से गुप्त प्रेमियों का जिससे वहां बच्चों की पैदावार बहुत तेजी से होती थी जिसमे काम अक्सर दूसरों का और, नाम सुल्तान का होता था!
इस छीना-झपटी में गद्दी रुकनुद्दीन के हाथ आई परन्तु एक बार जब रुकनुद्दीन हिन्दुओं को लूटने राज्य से बाहर गया था उसकी पोष्य बहन रजिया ने दिल्ली की गद्दी हथिया ली जिसमे दरबार के धूर्त और कामुक मुस्लिमों ने उसकी मदद की ताकि वे उसकी जवानी का अबाध भोग कर सकें!
इस तरह 1236 में ही रजिया गद्दी पर बैठ गयी!
परन्तु विलास और विषाक्त दरबारी बातावरण में रजिया की जवानी कामुक मुस्लिमों दरबारियों के लिए एक मुफ्त की उपहार थी और, दरबारीगण उसकी मदद एवं उसे धमका कर उसका उपभोग किया करते थे जिसमे से जमानुद्दीन याकूत नाम का एक घुडसाल भी था!
रजिया उस घुडसाल के कुछ ज्यादा ही नजदीक हो गयी जिस कारण बाकी दरबारियों को पूर्व के समान रजिया की सहज उपलब्धता में दिक्कतें आने लगी और, उन्होंने ताबरहिंद के शासक अल्तूनिया से विद्रोह करवा दिया!
1240 इस्वी में रजिया अल्तूनिया से युद्ध में हार गयी और, अल्तूनिया ने मुस्लिम संस्कारों ने मुताबित उसके घुडसाल प्रेमी जमानुद्दीन याकूत की हत्या कर रजिया को अपना रखैल बना लिया !
परन्तु रजिया को दूसरे के हाथों में जाता देख कर उसके दरबारियों में फिर से विद्रोह करवा दिया
वो कहते हैं ना कि
गंजेड़ी यार किसका वो तो बस दम मारा और खिसका
इसी तर्ज़ पर पहले की तरह रजिया की जवानी ना मिलने के कारण सारे दरबारियों ने रजिया का साथ छोड़ दिया और, इस तरह अपनों के ही दगाबाजी और विश्वासघात की शिकार हताश और निराश रजिया को दिल्ली की गलियों में भटकते हुए पकड़ लिया गया और, उसे मार कर वही दफना दिया गया!
## ## इस पूरी कहानी में सोचने वाली बात यह है कि रजिया उसी समय तक सुरक्षित रह पायी जब तक वो दरबारियों और सेनापतियों के लिए उपलब्ध थी और, जब उसने इस से इनकार किया तो उसे कुत्ते की तरह मार डाला गया!
सिर्फ इतना ही नहीं इस्लाम की इस कालिमा को छुपाने के लिए बहुत ही खूबसूरती से यह प्रचारित कर दिया गया की रजिया की हत्या हिन्दुओं ने कर दी जबकि, रजिया को उसके अंजाम तक उसके ही उन मुस्लिमों ने पहुँचाया जिनके लिए वो अनुपलब्ध हो चुकी थी!
क्योंकि इस्लाम में स्त्री सिर्फ भोग की वस्तु है और ये पूरी तरह हलाल है तथा , उनका कुरान भी इस प्रकार के कृत्य का पुरजोर समर्थन करता है!
इसीलिए हिन्दू लड़कियां मुस्लिमों से दोस्ती गांठने से पहले हजार बार रजिया सुल्तान का हश्र जरुर याद कर लें!

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