नाथूराम गोडसे ने अपनी बेरेटा पिस्टल की तीन गोलियाँ महात्मा गाँधी के
शरीर में उतार दी थीं.गोडसे ने स्वीकार किया कि उन्होंने ही गांधी को मारा
है. अपना पक्ष रखते हुए गोडसे ने कहा, ”गांधी जी ने देश की जो सेवा की है,
उसका मैं आदर करता हूँ. उनपर गोली चलाने से पूर्व मैं उनके सम्मान में
इसीलिए नतमस्तक हुआ था किंतु जनता को धोखा देकर पूज्य मातृभूमि के विभाजन
का अधिकार किसी बड़े से बड़े महात्मा को भी नहीं है.
15 नवंबर 1949 को जब नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को फाँसी के लिए ले जाया गया तो उनके एक हाथ में गीता और अखंड भारत का नक्शा था और दूसरे हाथ में भगवा ध्वज. प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि फाँसी का फंदा पहनाए जाने से पहले उन्होंने ‘नमस्ते सदा वत्सले’ का उच्चारण किया और नारे लगाए.

उनकी अस्थियों को अभी तक सुरक्षित रखा हुआ है. हर 15 नवंबर को गोडसे सदन जो महाराष्ट्र में है वहा कार्यक्रम होता हैं शाम छह से आठ बजे तक. वहाँ लोगो को उनके मृत्यु-पत्र को पढ़कर सुनाते हैं. उनकी अंतिम इच्छा भी बच्चों को कंठस्थ है.”गोडसे परिवार ने उनकी अंतिम इच्छा का सम्मान करते हुए उनकी अस्थियों को अभी तक चाँदी के एक कलश में सुरक्षित रखा हुआ है.
”गोडसे ने लिखकर दिया था कि मेरे शरीर के कुछ हिस्से को संभाल कर रखो और जब सिंधु नदी स्वतंत्र भारत में फिर से समाहित हो जाए और फिर से अखंड भारत का निर्माण हो जाए, तब मेरी अस्थियां उसमें प्रवाहित कीजिए. इसमें दो-चार पीढ़ियाँ भी लग जाएं तो कोई बात नहीं.”
अखंड भारत का निर्माण होने के बाद ही गोडसे की अस्थियां प्रवाहित की जायेंगी,ताकि उन्हें मुक्ति मिल सके.
15 नवंबर 1949 को जब नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को फाँसी के लिए ले जाया गया तो उनके एक हाथ में गीता और अखंड भारत का नक्शा था और दूसरे हाथ में भगवा ध्वज. प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि फाँसी का फंदा पहनाए जाने से पहले उन्होंने ‘नमस्ते सदा वत्सले’ का उच्चारण किया और नारे लगाए.

उनकी अस्थियों को अभी तक सुरक्षित रखा हुआ है. हर 15 नवंबर को गोडसे सदन जो महाराष्ट्र में है वहा कार्यक्रम होता हैं शाम छह से आठ बजे तक. वहाँ लोगो को उनके मृत्यु-पत्र को पढ़कर सुनाते हैं. उनकी अंतिम इच्छा भी बच्चों को कंठस्थ है.”गोडसे परिवार ने उनकी अंतिम इच्छा का सम्मान करते हुए उनकी अस्थियों को अभी तक चाँदी के एक कलश में सुरक्षित रखा हुआ है.
”गोडसे ने लिखकर दिया था कि मेरे शरीर के कुछ हिस्से को संभाल कर रखो और जब सिंधु नदी स्वतंत्र भारत में फिर से समाहित हो जाए और फिर से अखंड भारत का निर्माण हो जाए, तब मेरी अस्थियां उसमें प्रवाहित कीजिए. इसमें दो-चार पीढ़ियाँ भी लग जाएं तो कोई बात नहीं.”
अखंड भारत का निर्माण होने के बाद ही गोडसे की अस्थियां प्रवाहित की जायेंगी,ताकि उन्हें मुक्ति मिल सके.
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